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बळि॒त्था म॑हि॒मा वा॒मिन्द्रा॑ग्नी॒ पनि॑ष्ठ॒ आ। स॒मा॒नो वां॑ जनि॒ता भ्रात॑रा यु॒वं य॒मावि॒हेह॑मातरा ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

baḻ itthā mahimā vām indrāgnī paniṣṭha ā | samāno vāṁ janitā bhrātarā yuvaṁ yamāv ihehamātarā ||

पद पाठ

बट्। इ॒त्था। म॒हि॒मा। वा॒म्। इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑। पनि॑ष्ठः। आ। स॒मा॒नः। वा॒म्। ज॒नि॒ता। भ्रात॑रा। यु॒वम्। य॒मौ। इ॒हेह॑ऽमातरा ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:59» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:25» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर अध्यापक और उपदेशक कैसे हों, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्राग्नी) पवन और अग्नि के तुल्य राजप्रजाजनो ! जो (वाम्) तुम दोनों का (पनिष्ठः) अतीव प्रशंसित (बट्) सत्य (महिमा) प्रताप वा (वाम्) तुम दोनों का (समानः) तुल्य (जनिता) उत्पादन करनेवाला पिता (इहेहमातरा) यहाँ-यहाँ जिनकी माता वे (यमौ) नियन्ता अर्थात् गृहस्थी के चलानेवाले (भ्रातरा) भाई वर्त्तमान हैं उनको (इत्था) इस प्रकार से (युवम्) तुम (आ, जीवथः) जिलाते हो ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो अध्यापक और उपदेशक बिजुली और सूर्य्य के तुल्य विद्याओं में व्याप्त तथा परोपकारी हैं, वे सत्य महिमावाले होते हैं ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरध्यापकोपदेशकौ कीदृशौ भवेतामित्याह ॥

अन्वय:

हे इन्द्राग्नी ! यो वां पनिष्ठो बड् महिमा वां समानो जनितेहेहमातरा यमौ भ्रातरा वर्त्तेते तावित्था युवमाजीवथः ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (बट्) सत्यम् (इत्था) अनेन प्रकारेण (महिमा) प्रतापः (वाम्) युवयोः (इन्द्राग्नी) वायुवह्नी इव वर्त्तमानौ राजप्रजाजनौ (पनिष्ठः) अतिशयेन प्रशंसितः (आ) (समानः) तुल्यः (वाम्) युवयोः (जनिता) उत्पादकः (भ्रातरा) बन्धू (युवम्) युवाम् (यमौ) नियन्तारौ (इहेहमातरा) इहेहमाता जननी ययोस्तौ ॥२॥
भावार्थभाषाः - येऽध्यापकोपदेशका विद्युत्सूर्य्यवत् व्याप्तविद्याः परोपकारिणः सन्ति ते सत्यमहिमानो भवन्ति ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे अध्यापक व उपदेशक विद्युत व सूर्याप्रमाणे विद्येत रमलेले असतात व परोपकार करतात ते खरे महिमायुक्त असतात. ॥ २ ॥